विवरण को देखते हैं तो यह भयानक लगता है। जबकि इसमें सच्चाई का घुर अभाव है। जिस सर्वेक्षण के आधार पर यह चिंतन गढ़ा गया है उसकी सत्यता पर भी थोड़ी नजर दौरानी
चाहिए। यह सर्वेक्षण एक समर्पित अमेरिकी दलित सैंपल पर नहीं, बल्कि एक स्वयं-चयनित सैंपल पर आधारित है। जिसमें अमेरिकी दलित अधिकार समर्थकों को शामिल किया गया था।
ऐसा कहना कि अमेरिकी दलितों में दो-तिहाई जातिवादी भेदभाव का सामना कर रहे हैं, बेतुका है। कम उम्र अमेरिकी दलितों के बॉस होने की संभावना है जिन्हें जाति के बारे में जानकारी हो,
या यह जानते हों कि दलित क्या है। बेशक, कुछ अमेरिकी दलित अन्य भारतीय अमेरिकियों के साथ काम कर सकते हैं। लेकिन वहां बहुत कम दलित – या भारतीय हैं जो ऐसा कर रहे हैं।
इस प्रकार हम देखते हैं कि अमेरिका में एक नए प्रकार का खेल चल रहा है। अब हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए अमेरिका में नए सिरे से गठजोड़ बना है। उस गठजोड़ा की छाया भारत में भी
दिखने को मिल रही है। यहां। भी कुछ मुसलमान, ईसाई और सिख दलितों के साथ मिलकर उच्च वर्ग के खिलाफ माहौल बनाने की आड़ में हिन्दू धर्म को ही बदनाम करने में लग गए हैं। यह बेहद खतरनाक
है।
इस कहानी को गढ़ने में कही न कहीं विदेशी और राष्ट्र विरोधी शक्तियां काम कर रही है। यही नहीं इससे दलितों को भी कोई फायदा होता नहीं दिख रहा है। दलित उन साम्राज्यवादी ताकतों का
शिकार हो रहे हैं, जिसने शोषण और दमन की नीति अपनाकर भारत को लंबे समय तक गुलाम बना कर रखा। इससे हमें सावधान रहना होगा साथ ही समाज में जो कुरीतियां व्याप्त है उसे भी समाप्त करने
की कोशिश करनी होगी।
हालाँकि जाति के आधार पर भेदभाव दक्षिण एशिया में उतना प्रचलित और हिंसक नहीं हो सकता है, लेकिन हाल के अध्ययनों से पता चला है कि यह महत्वपूर्ण है। अमेरिका स्थित दलित नागरिक
अधिकार संगठन, इक्वेलिटी लैब्स के 2016 के सर्वेक्षण के अनुसार , 60 प्रतिशत दलितों ने जाति-आधारित अपमानजनक चुटकुले या टिप्पणियों का अनुभव किया है, तीन में से एक दलित छात्र ने अपनी
शिक्षा के दौरान भेदभाव किए जाने की सूचना दी है और 20 प्रतिशत दलित उत्तरदाताओं ने बताया कि व्यवसाय के स्थान पर उनके साथ भेदभाव किया जाता है।
(यह आलेख विभिन्न वेबसाइटों पर चल रहे खबरों और आलेखों का संपादित अंश है।)
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